जाने इंडिया के अर्थतंत्र को कोरोना वायरस जैसी महामारी से कीतना बडा झटका लगेगा


सरकार का आकलन है कि लॉकडाउन की वजह से कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को कंट्रोल करने में मदद मिली है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से लोगों और अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंच रही है. वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि एक रफ आइडिया के हिसाब से अगर लॉकडाउन 30 दिन तक जारी रहता है तो भारत की अर्थव्यवस्था को लगभग 250 बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है.

एक अनुमान के मुताबिक 21 दिनों के लॉक डाउन में भारत की अर्थव्यवस्था को 8.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है.

अगर लॉकडाउन को जल्दी हटा लिया जाता है तो वित्तीय वर्ष 2020-21 में इस नुकसान की भरपाई की जा सकती है, लेकिन अगर लॉकडाउन लंबा खिंचा तो रिकवरी असंभव हो सकती है.

लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार पर कया असर पडेगा??

भारत में कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं. इसका संक्रमण रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन का एलान किया है. इससे देश में आर्थिक गतिविधियों पर ब्रेक लग गया है.

विश्लेषकों का मानना है कि सरकार को इस महामारी को हराने के लिए कुछ और कदम भी उठाने चाहिए. कोरोना के चलते बेरोजगारी, बैलेंस शीटों में कमजोरी, कम पूंजीगत खर्च और कंज्यूमर मांग में गिरावट आने के आसार हैं.

कोरोना के चलते पहले ही शेयर बाजार से 52 लाख करोड़ रुपये की दौलत स्वाहा हो चुकी है. बेंचमार्क सूचकाकं बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी 50 इंडेक्स अपने शिखर स्तर से 35 फीसदी नीचे आ गए हैं, जबकि कई शेयर कई साल पहले के भावों पर मिल रहे हैं
1. 
इस मामले में भारत और विश्व में हालत बदतर हो जाएं, तो शेयर बाजार में बिकवाली का दबाव और बढ़ सकता है. भारत की विकास दर 3.5 से 4 फीसदी तक फिसल सकती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था पूरी तरह मंदी की चपेट में जा सकती है.

2. 
इस स्थिति में वायरस को भारत में रोक लिया जाएगा. लॉकडाउन को 15 अप्रैल से आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. ब्रोकरेज के अनुसार, इस स्थिति में भारतीय बाजार में धीरे-धीरे खरीदारी लौटेगी. अर्थव्यवस्था पर असर सीमित होगा और वित्त वर्ष 2020-21 के लिए जीडीपी लक्ष्य 4.5 से 5 फीसदी होगा. मार्च तिमाही खासी प्रभावित होगी.
3. 

इस परिदृश्य में वायरस को भारत में सीमित कर दिया जाएगा. मगर दुनिया में स्थिति बेकाबू हो जाएगी. ऐसी स्थिति में भारतीय शेयर बाजार जबर्दस्त प्रदर्शन करेंगे और वैश्विक मंदी के दौर में भारत की विकास दर 4 से 4.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी.

4. अंतिम परिदृश्य में भारत और दुनिया भर में इस महामारी पर अंकुश पा लिया जाएगा. ब्रोकरेज ने कहा, "इस स्थिति भारतीय शेयर बाजार जबर्दस्त चढ़ सकते हैं. बाजार में एकाएक खरीदारी शुरू हो सकती है. भारत पर पड़ने वाले आर्थिक असर घटेगा. मगर 3 से 5 महीने तक अर्थव्यवस्था सुस्त रहेगी.

सरकार ने दी राहत
सरकार ने कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों के लिए पैकेज का एलान किया है. 1.70 लाख करोड़ रुपये के इस पैकेज से इस वर्ग की मदद सरकार करेगी. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को इस पैकेज का एलान किया. उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते लॉकडाउन से कोई भूखा नहीं रहेगा. सरकार इसका इंतजाम करेगी.

इन्हें मिला 50 लाख रुपये का बीमावित्त मंत्री ने कहा कि डॉक्टर और नर्स सहित स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस की सुविधा दी जा रही है. ये लोग कोरोना से लड़ाई में अपनी जान जोखिम में डालकर दिनरात काम कर रहे हैं. इन लोगों को 50 लाख रुपये के बीमा की सुविधा मिलेगी. इससे करीब 20 लाख लोगों को फायदा होगा.
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लम्बा लॉकडाउन अर्थतंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करता है, जो की शायद कोरोना महामारी से ज्यादा गंभीर एवं खतरनाक हो सकता है। भारत की सामाजिक-आर्थिक सरंचना, भौगोलिक परिस्थितियों, स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक कारको में असमानता को यदि ध्यान में ले तो लॉक डाउन समाज के गरीब तबके, अप्रवासी मजदूरों, दिहाड़ी कारीगरों, बेरोजगारों, लाखों किसानों के लिए बहुत ही कठोर उपाय है।
डॉ. महावीर गोलेच्छा (स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ)
भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य नीति एवं महामारी विज्ञान विशेषज्ञों द्वारा कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन को सुझाव को महत्व देते हुए इसे लागू भी किया। देखा जाये तो दशकों से हमारे देश में स्वास्थ्य पर होने वाले बहुत कम निवेश के कारण स्वास्थ्य प्रणाली कमजोर हो चुकी है एवं हमारे पास स्वास्थ्य संसाधनों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की हर स्तर पर भारी कमी है। ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली निश्चित रूप से कोरोना जैसी महामारी का सामना नहीं कर सकती है. इन सब बातो को देखते हुए लगता है की लॉक डाउन ही एक मात्र विकल्प था। लॉकडाउन ने हमें 21 दिन का समय भी दिया ताकि हम कोरोना से निपटने के लिए उचित तयारी कर पाएं। पर्याप्त संसाधन जुटा पाएं, लेकिन पुन: प्रधानमत्री मोदी ने 3 मई तक का लॉक डाउन घोषित कर दिया। कई राज्यों ने तो इससे पहले ही इसकी घोषणा कर दी थी।
सरकार को लॉकडाउन जैसे विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए, वैज्ञानिक रूप से सभी आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य नीति एवं अन्य कारको को संतुलित करते हुए आगे की रणनीति एवं निर्णय लेने की जरूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं है की लॉक डाउन महामारी के संक्रमण को रोकने का सबसे ठोस एवं आसान उपाय है, लेकिन लम्बा लॉकडाउन अर्थतंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करता है, जो की शायद कोरोना महामारी से ज्यादा गंभीर एवं खतरनाक हो सकता है।
भारत की सामाजिक-आर्थिक सरंचना, भौगोलिक परिस्थितियों, स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक कारकों में असमानता को यदि ध्यान में ले तो लॉक डाउन समाज के गरीब तबके, अप्रवासी मजदूरों, दिहाड़ी कारीगरों, बेरोजगारों, लाखों किसानों के लिए बहुत ही कठोर उपाय है। हमे इस बात को संज्ञान में लेना चाहिए कि लंबे समय तक और कड़े लॉकडाउन से आर्थिक कठिनाई, अकाल, कानून और व्यवस्था के मुद्दे पैदा हो सकते हैं, जो लॉकडाउन और स्वास्थ्य प्रणाली, महामारी नियंत्रण के उद्देश्यों नकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगे।
लॉकडाउन के कारण काफी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं- टीकाकरण, आंगनवाड़ी द्वारा माता एवं शिशुओं का पोषण, कैंसर मरीजों का उपचार, किडनी मरीजों की डायलिसिस सेवाओं का काफी गंभीर प्रभाव पड़ा है। भारत की नाजुक सामाजिक आर्थिक सरंचना, एक विस्तारित लॉकडाउन से स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ा सकती है और हमें गरीबी और बीमार स्वास्थ्य के बीच दुष्चक्र से बचने के लिए सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

हमे दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, हांगकांग और चेक गणराज्य आदि अन्य देशो की कार्यप्रणली से सीखने की आयशयकता है की किस प्रकार से इन देशो ने स्मार्ट लॉकडाउन और अन्य प्रभावी उपायों के साथ अर्थव्यवस्था को बचाते हुए महामारी को नियंत्रित किया. सरकार को आने वाले कुछ सप्ताह में तेज़ी से लॉक डाउन में छूट एवं इसे आसान बनाने, संक्रमण को नियंत्रित करने, अर्थतंत्र को संभालने के लिए ठोस कदम उठाने की अत्यंत आवश्यकता है।


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